अहोई अष्टमी तिथि

7 November, 2020
अहोई अष्टमी तिथि

कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी व्रत रखने का विधान है। यह व्रत माताएं अपनी संतान की रक्षा और उनकी दीर्घायु की कामना के लिए रखती हैं। कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की करवा चौथ के बाद अष्टमी को यह व्रत रखा जाता है। इस व्रत में अहोई माता के साथ भगवान शिव और पार्वती की भी पूजा की जाती है। इस दिन माताएं दिनभर निर्जला व्र रखती हैं और रात को तारों को देखकर व्रत खोलती हैं। इस दिन किसी भी प्रकार की नुकीली चीज का बिल्कुल भी नहीं किया जाता, न ही किसी जीव को नुकसान पहुंचाते हैं। 

अहोई अष्टमी की तिथि

इस वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का प्रारंभ 08 नवंबर को सुबह 07 बजकर 29 मिनट से हो रहा है। इस तिथि का समापन 09 नवंबर को सुबह 06 बजकर 50 मिनट पर होगा। ऐसे में अहोई अष्टमी का व्रत 8 नवंबर को रखा जाएगा।

पूजा मुहूर्त

अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता की पूजा विधि विधान से की जाती है। इस दिन पूजा के लिए शाम को 01 घण्टा 25 मिनट का समय है। आपको अहोई अष्टमी की पूजा शाम 05 बजकर 30 मिनट से शाम 06 बजकर 50 मिनट के बीच कर लेनी चाहिए।

पारण का समय

अहोई अष्टमी का व्रत तारों के देखने के बाद पारण के साथ पूरा होता है। 08 नवंबर को शाम 08 बजकर 10 मिनट पर तारों को देखने का समय है। इसके बाद आप पारण करके व्रत को पूरा कर सकती हैं।

चंद्रोदय का समय

अहोई अष्टमी के दिन चंद्रमा काफी देर से दिखाई देगा। इस दिन देर रात 12 बजकर 05 मिनट पर चंद्रोदय होगा। ऐसे में अधिकतर व्रती तारों को देखने के बाद पारण कर लेती हैं। अधिकतर जगहों पर तारों को देखकर ही व्रत पूरा करने की परंपरा है।

अहोई अष्टमी व्रत की कथा

साहूकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी, उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी| मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया| इस पर क्रोधित होकर स्याहु ने कहा कि मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।

स्याहु के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक-एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें| सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है| इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं, वे सात दिन बाद मर जाते हैं सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा| पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।

सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और छोटी बहु से पूछती है कि तू किस लिए मेरी इतनी सेवा कर रही है और वह उससे क्या चाहती है? जो कुछ तेरी इच्छा हो वह मुझ से मांग ले| साहूकार की बहु ने कहा कि स्याहु माता ने मेरी कोख बांध दी है जिससे मेरे बच्चे नहीं बचते हैं| यदि आप मेरी कोख खुलवा दे तो मैं आपका उपकार मानूंगी| गाय माता ने उसकी बात मान ली और उसे साथ लेकर सात समुद्र पार स्याहु माता के पास ले चली।

रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं| अचानक साहूकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है| इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे को मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है।

छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है| गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है।

वहां छोटी बहू स्याहु की भी सेवा करती है| स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहू होने का आशीर्वाद देती है| स्याहु छोटी बहू को सात पुत्र और सात पुत्रवधुओं का आर्शीवाद देती है और कहती है कि घर जाने पर तू अहोई माता का उद्यापन करना। सात सात अहोई बनाकर सात कड़ाही देना। उसने घर लौट कर देखा तो उसके सात बेटे और सात बहुएं बेटी हुई मिली। वह ख़ुशी के मारे भाव-भिवोर हो गई। उसने सात अहोई बनाकर सात कड़ाही देकर उद्यापन किया।

अहोई का अर्थ एक यह भी होता है 'अनहोनी को होनी बनाना'|  जैसे साहूकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था। जिस तरह अहोई माता ने उस साहूकार की बहु की कोख को खोल दिया, उसी प्रकार इस व्रत को करने वाली सभी नारियों की अभिलाषा पूर्ण करें।

 

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