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कृष्णामूर्ति पद्धति के अनुसार जाने आपको किस प्रकार का रोग होगा?
12 July, 2019
कृष्णामूर्ति पद्धति के अनुसार जाने आपको किस प्रकार का रोग होगा?
बीमारी
बीमारियां - छठे भाव से खतरे आठवें भाव से दुर्घटनाएं तथा कमियां 12वें भाव से देखी जाती है जातक को कोई कमी हो तो 12वें भाव का सबलार्ड़ 6,8 या 12वें भाव का कारक होना चाहिए प्रत्येक ग्रह शरीर के किसी भाग को दर्शाता है इसी प्रकार प्रत्येक ग्रह एवं प्रत्येक भाव शरीर के किसी भाग को दर्शाते है अतः 12वे भाव के सबलार्ड की प्रकृति और उन भाव जिसका वह कारक है शरीर के प्रभावित भाग को इंगित करेगा।
असाध्य रोग
असाध्य रोगः-इस रोग को केवल शनि देता है यदि लग्न का sublord छठे भाव को इगिंत करता है तो तथा शनि से संबंध हो तो असाध्य रोग होता है।
छठे भाव में जो राशि होती है वह राशि हमारी शरीर में जिस भाग को इगिंत करती है उस भाग में प्रॉब्लम होती है।
कोई बीमारी कब ठीक होगी
दशा अंतर-प्रत्यंतर का स्वामी जब भी 5,11 को इगिंत करता है तो बीमारी ठीक हो जाती है इसके लिए हमे दशा को देखना चाहिए।
लग्न का sublord यदि 6,8,12 को इगिंत करता है तो व्यक्ति बीमार रहता है।
6 भाव का sublord इन स्टार 6,12 को इगिंत करता है वो असाध्य रोग है।
8वे भाव में केतु हो तो पाइल्स की बीमारी होती है।
षष्टेश व चंद्रमा लग्न में हो तो चेहरे की बीमारी होती है।
बुध व षष्टेश लग्न में हो तो दिल की बीमारी होती है।
शुक्र व षष्टेश लग्न में हो तो आँखों की बीमारी होती है।
5भाव का sublord छठे भाव को इगिंत करता है तो लम्बी बीमारी होती है।
6 भाव का sublord यदि सूर्य से पीड़ित हो तो दुर्घटनाए, एक्सीडेंट होता है।
6 भाव का sublord यदि मंगल से पीड़ित हो तो अचानक मौत हो जाती है।
6 भाव का sublord यदि शनि से संबंधित हो तो चिरकाल रोग,वेदना मृत्यु होती है।
6 भाव का sublord यदि गुरु से संबंधित हो ब्लड प्रेशर, ह््रदय रोग होता है।
जन्म पत्रिका में :
प्रथम भाव में केतू यदि शनि के साथ स्थित हो तो जातक की मृत्यु निश्चय ही सेलीबोरल थम्बोसिस या हैमरेज से होती है।
दूसरे भाव में केतू यदि गुरू और चन्द्र के साथ स्थित हो तो जातक की मृत्यु गले या मुंह के कैंसर से होती है।
तृतीय भाव में सिंह राशि में मंगल के साथ केतू स्थित हो तो उसकी मृत्यु फांसी लगने से होती है। सिंह राशि केतू की शत्रु राशि है क्योंकि राहू और केतू, सूर्य एवं चन्द्र को ग्रसित कर लेते हैं। केतू की कर्क या सिंह राशि में स्थिति अच्छे फल नहीं देती है।
चतुर्थ भाव मे केतू यदि गुरू और चन्द्र के साथ स्थित हो तो जातक की मृत्यु छाती के कैंसर से होती है क्योंकि चतुर्थ भाव का स्वामित्व फेंफड़ों और छाती पर है। रबीन्द्र नाथ टैगोर की मृत्यु हार्ट अटैक से हुई क्योंकि उनकी कुण्डली में चतुर्थ भाव में केतू के साथ मंगल स्थित है।
पंचम भाव मे केतू यदि किन्हीं दो अन्य दुष्ट ग्रहों के साथ स्थित हो तो उसकी मृत्यु ज़िगर या पेट की किसी गम्भीर बीमारी से होती है।
छठे भाव में केतू यदि किन्हीं अन्य दो दुष्ट ग्रहों से पीड़ित हो तो उसकी मृत्यु किड़नी की बीमारी से होती है।
सप्तम भाव में केतू यदि अन्य दो दुष्ट ग्रहों के साथ स्थित हो तो उसकी मृत्यु ज्ञानेन्द्रियों की बीमारी,प्रोस्टेट ग्लेंड अथवा ज्ञानेन्द्रिय के रोग से होती है।
अष्टम भाव में केतू यदि मंगल के साथ वृश्चिक, मकर अथवा कुम्भ राशि में स्थित हो तो उसकी हत्या होती है या वह आत्म हत्या करता है।
नवम भाव मे केतू यदि अन्य दो दुष्ट ग्रहों के साथ स्थित हो तो उसकी मृत्यु अर्थराइटिस या पक्षाघात से होती है।
दशम भाव मे केतू यदि अन्य दो दुष्ट ग्रहों के साथ स्थित हो तो उसकी मृत्यु कूल्हे की हड्डी टूटने, गोली या हार्ट अटैक से होती है।
एकादश भाव में केतू यदि अन्य दो दुष्ट ग्रहों के साथ स्थित हो तो उसकी मृत्यु भी कूल्हे की हड्डी टूटने या किसी गम्भीर पेट की बीमारी से होती है।
बारहवें भाव मे केतू यदि अन्य दो दुष्ट ग्रहों के साथ स्थित हो तो उसकी मृत्यु भी कूल्हे की हड्डी टूटने से या जेल में होती है। केतू मिथुन राशि में नीच का होता है तथा मिथुन राशि मे यह बुरे फल प्रदान करता है। केतू सिंह राशि में भयावह हो जाता है। यदि यह भाव 3, 6, 8 या 12 हों तो जातक के दुर्भाग्य का क्या कहना। ऐसा जातक दमा,प्लूरिसी या दिल का मरीज़ होता है। केतू की मिथुन राशि में स्थिति से यह दोष भी उत्पन्न होता है कि वह मालिक के पैसे के हेरफेर में सजा भी पाता है, वह धनहीन, नीच तथा जीवन में अनेक कठिनाइयों को आमन्त्रण देता है।