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जन्माष्टमी
3 September, 2018
जन्माष्टमी
भगवान श्री कृष्ण की कहानी
हमारी
प्राचीन कहानियों का सौंदर्य यह है कि वे कभी भी विशेष स्थान या विशेष समय पर नहीं
बनाई गई हैं। रामायण या महाभारत प्राचीन काल में घटी घटनाएं मात्र नहीं हैं। ये
हमारे जीवन में रोज घटती हैं। इन कहानियों का सार शाश्वत है।
श्री कृष्ण जन्म की कहानी का भी
गूढ़ अर्थ है। इस कहानी में देवकी शरीर की प्रतीक हैं और वासुदेव जीवन शक्ति अर्थात
प्राण के। जब शरीर प्राण धारण करता है, तो
आनंद अर्थात श्री कृष्ण का जन्म होता है। लेकिन अहंकार (कंस) आनंद को खत्म करने का
प्रयास करता है। यहाँ देवकी का भाई कंस यह दर्शाता है कि शरीर के साथ-साथ अहंकार
का भी अस्तित्व होता है। एक प्रसन्न एवं आनंदचित्त व्यक्ति कभी किसी के लिए
समस्याएं नहीं खड़ी करता है, परन्तु
दुखी और भावनात्मक रूप से घायल व्यक्ति अक्सर दूसरों को घायल करते हैं, या उनकी राह में अवरोध पैदा करते हैं। जिस व्यक्ति को लगता है कि
उसके साथ अन्याय हुआ है, वह
अपने अहंकार के कारण दूसरों के साथ भी अन्यायपूर्ण व्यवहार करता है।
अहंकार
का सबसे बड़ा शत्रु आनंद है। जहाँ आनंद और प्रेम है वहां अहंकार टिक नहीं सकता, उसे झुकना ही पड़ता है। समाज में एक बहुत ही उच्च
स्थान पर विराजमान व्यक्ति को भी अपने छोटे बच्चे के सामने झुकना पड़ जाता है। जब
बच्चा बीमार हो, तो
कितना भी मजबूत व्यक्ति हो, वह
थोडा असहाय महसूस करने ही लगता है। प्रेम, सादगी
और आनंद के साथ सामना होने पर अहंकार स्वतः ही आसानी से ओझल होने लगता है । श्री
कृष्ण आनंद के प्रतीक हैं, सादगी
के सार हैं और प्रेम के स्रोत हैं।
कंस
के द्वारा देवकी और वासुदेव को कारावास में डालना इस बात का सूचक है कि जब अहंकार
बढ जाता है तब शरीर एक जेल की तरह हो जाता है। जब श्री कृष्ण का जन्म हुआ था, जेल के पहरेदार सो गये थे। यहां पहरेदार वह
इन्द्रियां है जो अहंकार की रक्षा कर रही हैं क्योंकि जब वह जागता है तो बहिर्मुखी
हो जाता है। जब यह इन्द्रियां अंतर्मुखी होती हैं तब हमारे भीतर आंतरिक आनंद का
उदय होता है।
श्री कृष्ण का दूसरा नाम
"माखन चोर" - का अर्थ
श्री कृष्ण माखनचोर के रूप में भी जाने जाते हैं। दूध पोषण का सार है और
दूध का एक परिष्कृत रूप दही है। जब दही का मंथन होता है, तो मक्खन बनता है और ऊपर तैरता है। यह भारी
नहीं बल्कि हल्का और पौष्टिक भी होता है। जब हमारी बुद्धि का मंथन होता है, तब यह मक्खन की तरह हो जाती है। तब मन में
ज्ञान का उदय होता है,
और व्यक्ति अपने स्व
में स्थापित हो जाता है। दुनिया में रहकर भी वह अलिप्त रहता है, उसका मन दुनिया की बातों से / व्यवहार से
निराश नहीं होता। माखनचोरी श्री कृष्ण प्रेम की महिमा के चित्रण का प्रतीक है।
श्री कृष्ण का आकर्षण और कौशल इतना है कि वह सबसे संयमशील व्यक्ति का भी मन चुरा
लेते हैं।
श्री कृष्ण के सिर पर मोर पंख का महत्व
एक राजा अपनी पूरी प्रजा के लिए ज़िम्मेदार होता है। वह ताज के रूप में इन
जिम्मेदारियों का बोझ अपने सिर पर धारण करता है। लेकिन श्री कृष्ण अपनी सभी जिम्मेदारी
बड़ी सहजता से पूरी करते हैं - एक खेल की तरह। जैसे किसी माँ को अपने बच्चों की
देखभाल कभी बोझ नहीं लगती। श्री कृष्ण को भी अपनी जिम्मेदारियां बोझ नहीं लगतीं
हैं और वे विविध रंगों भरी इन जिम्मेदारियों को बड़ी सहजता से एक मोरपंख (जो कि
अत्यंत हल्का भी होता है) के रूप में अपने मुकुट पर धारण किये हुए हैं।
श्री कृष्ण हम सबके भीतर एक आकर्षक और आनंदमय धारा हैं। जब मन में कोई
बेचैनी, चिंता या इच्छा न हो तब ही हम गहरा विश्राम पा
सकते हैं और गहरे विश्राम में ही श्री कृष्ण का जन्म होता है।
यह समाज में खुशी की एक लहर लाने का समय है - यही जन्माष्टमी का संदेश है।
गंभीरता के साथ आनंदपूर्ण बनें।
जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को मनाया जाता
है| अष्टमी तिथि का महत्व इसलिये है क्योंकि वह
वास्तविकता के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष स्वरूपों में सुन्दर संतुलन को दर्शाता है, प्रत्यक्ष भौतिक संसार और अप्रत्यक्ष
आध्यात्मिक दायरे|
भगवान श्रीकृष्ण का अष्टमी तिथि के दिन जन्म होना यह दर्शाता
है कि वे आध्यात्मिक और सांसारिक दुनिया में पूर्ण रूप से परिपूर्ण थे| वे एक महान शिक्षक और आध्यात्मिक प्रेरणा के
अलावा उत्कृष्ट राजनीतिज्ञ भी थे| एक तरफ वे योगेश्वर हैं (वह अवस्था जिसे प्रत्येक योगी हासिल करना चाहता
है) और दूसरी ओर वे नटखट चोर भी हैं|
भगवान श्री कृष्ण का सबसे अद्भुत गुण यह है कि वे सभी संतों में
सबसे श्रेष्ठ ओर पवित्र होने के बावजूद वे अत्यंत नटखट भी हैं| उनका स्वभाव दो छोरों का सबसे सुन्दर संतुलन
है और शायद इसलिये भगवान श्री कृष्ण के व्यक्तित्व को समझ पाना बहुत ही कठिन है| अवधूत बाहरी दुनिया से अनजान है और सांसारिक
पुरुष, राजनीतिज्ञ और एक राजा आध्यात्मिक दुनिया से
अनजान है|
लेकिन भगवान श्री कृष्ण
दोनों द्वारकाधीश और योगेश्वर हैं|
भगवान श्री कृष्ण की शिक्षा और ज्ञान हाल के समय के लिये सुसंगत
हैं क्योंकि वे व्यक्ति को सांसारिक कायाकल्पो में फँसने नहीं देती और संसार से
दूर होने भी नहीं देती|
वे एक थके हुए और
तनावग्रस्त व्यक्तित्व को पुनः प्रज्वलित करते हुये और अधिक केंद्रित और गतिशील
बना देती है|
भगवान श्री कृष्ण हमें
भक्ति की शिक्षा कुशलता के साथ देते हैं| गोकुलाष्टमी का उत्सव मनाने का अर्थ है कि विरोधाभासी गुणों को लेकिन फिर
भी सुसंगत गुणों को अपने जीवन में उतार के या धारण कर के प्रदर्शित करना|
जन्माष्टमी का उत्सव मनाने का सबसे प्रामाणिक तरीका यह है कि आप को
यह जान लेना होगा कि आपको दो भूमिकाएं निभानी हैं| यह कि आप इस ग्रह के एक जिम्मेदार व्यक्ति हैं
और उसी समय आपको यह एहसास करना होगा कि आप सभी घटनाओं से परे हैं और एक अछूते
ब्रह्म हैं|
जन्माष्टमी का उत्सव
मनाने का वास्तविक महत्व अपने जीवन में अवधूत के कुछ अंश को धारण करना और जीवन को
अधिक गतिशील बनाना होता है|
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