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नवरात्र क्यों मनाये जाते है
18 March, 2018
नवरात्र क्यों मनाये जाते है
नवरात्र क्यों मनाये जाते है
1. महिषासुर नामक राक्षस का वध करने के लिए नौ दिनों तक माँ दुर्गा और महिषासुर का महासंग्राम चला , अंततः महिषासुर का वध करके माँ दुर्गा महिषासुरमर्दिनी कहलाईं । तभी से हर्षो -उल्लाश के साथ नवरात्र पूजा का शुभारम्भ हुआ।
2. एक दूसरी कथा के अनुसार जब राम को युद्ध में रावण को पराजित करना था । तब श्रीराम ने नौ दिनों तक ब्रत और पूजा विधि के अनुसार चंडी पूजन की और युद्ध में विजय हासिल की । अधर्म पर धर्म की इस विजय के कारण लोगो ने नवरात्र का पूजन शुरू किया था ।
नवरात्री व्रत के दौरान क्या करें
जैसा की हम सभी जानते है की लाल रंग माँ को सर्वोपरी है । इसलिए माँ को प्रश्सन करने के लिए लाल रंग के वस्तुओ का उपयोग करे जैसे की माँ का वस्त्र,आसन ,फूल इत्यादि
सुबह और शाम दीपक प्रज्जवलित करें आरती और भजन करे । संभव हो तो वहीं बैठकर माँ का पाठ , सप्तसती और दुर्गा चालीसा पढ़े
नवरात्री में ब्रह्मचर्य का पालन करे
नवरात्र में लहशुन प्याज का उपयोग वर्जित करे
सामान्य नमक की जगह सेंधा नमक उपयोग में लाये
दिन में कतई न सोये
साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखे
नवरात्री मे व्रत रखने वाले को जमीन पर सोना चाहिए।
नवरात्र के अन्तिम दिन कुवारी कन्याओ को घर बुलाकर भोजन अवश्य कराए। नव कन्याओं को नव दुर्गा रूप मान कर पुजन करे और आवभगत करे
नवरात्री के दिनों मे हर एक व्यक्ति खासकर व्रतधारी को क्रोध, मोह, लोभ आदि दुष्प्रवृत्तियों का त्याग करना चाहिए।
अष्टमी-नवमीं पर विधि विधान से कंजक पूजन करें और उनसे आशीर्वाद जरूर लें।
नवरात्रे के आखिरी दिन पूरे श्रद्धा और भक्ति भाव से माँ की विदाई यानि की विसर्जन कर दे ।
नवरात्री व्रत के दौरान क्या नहीं करें
दाढ़ी-मूंछ, बाल और नहीं कटवाने चाहिए
अखंड ज्योति जलाने वालों को नौ दिनों तक अपना घर खाली नहीं छोड़ना चाहिए
पूजा के दौरान किसी भी तरह के बेल्ट, चप्पल-जूते या फिर चमड़े की बनी चीजें नहीं पहननी चाहिए
काला रंग का कपड़ा वर्जित करे क्योंकि यह रंग शुभ नहीं माना जाता है
मॉस, मछली , उत्त्जेक पदार्थ जैसे शराब ,गुटखा और सिगरेट का सेवन नहीं करना चाहिए
किसी का दिल दुखाना , झूट बोलने से बचे
नौ दिन तक व्रत रखने वाले को अश्थियों (मुर्दो) शव के पास नहीं जाना चाहिए
शारीरक संबध बनाने से बचे
नवरात्र में नौ दिन तक माँ चंडी के नौ विभिन्न स्वरुपो की पूजा होती है ।
शैलपुत्री
ब्रह्मचारिणी
चंद्रघंटा
कूष्माण्डा
स्कन्दमाता
कात्यायनी
कालरात्रि
महागौरी
सिद्धिदात्री
नवरात्र कलश स्थापना की विधि
धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। हिन्दू धर्म में ऐशी धारणा है की कलश के मुख में विष्णुजी का निवास, कंठ में रुद्र तथा मूल में ब्रह्मा स्थित हैं और कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं।
कलश स्थापना के लिए सामग्री
घट स्थापना के लिए मिट्टी ,सोना, चांदी, तांबा अथवा पीतल का कलश । याद रखे, लोहे या स्टील के कलश का प्रयोग पूजा में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
मिट्टी का पात्र, मिट्टी और जौ :- जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र और शुद्ध साफ की हुई मिट्टी जिसमे की जौ को बोया जा सके
कलश में भरने के लिए शुद्ध जल अथवा अगर गंगाजल मिल जाये तो उत्तम होता है
कलश ढकने के लिए ढक्कन
पानी वाला नारियल और इसपर लपेटने के लिए लाल कपडा
मोली (Sacred Thread) लाल सूत्र
इत्र
साबुत सुपारी
दूर्वा
कलश में रखने के लिए कुछ सिक्के
पंचरत्न
अशोक या आम के पत्ते
ढक्कन में रखने के लिए बिना टूटे चावल
फूल माला
कलश स्थापना विधि
सबसे पहले पूजा स्थल को शुद्ध कर ले उसके ऊपर लाल रंग का कपड़ा बिछा ले । कपड़े पर थोड़ा चावल रख ले और गणेश जी का स्मरण करे । तत्पश्चात मिट्टी के पात्र में जौ बोना चाहिए । पात्र के उपर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करना चाहिए । कलश के मुख पर रक्षा सूत्र बांध ले और चारो तरफ कलश पर रोली से स्वस्तिक या ऊं बना ले । कलश के अंदर साबुत सुपारी, दूर्वा, फूल, सिक्का डालें । उसके ऊपर आम या अशोक के पत्ते रखने चाहिए उसके ऊपर नारियल, जिस पर लाल कपडा लपेट कर मोली लपेट दें। अब नारियल को कलश पर रखें। ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिरे पर हो, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है। नारियल का मुख ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं, जबकि पूर्व की तरफ नारियल का मुख रखने से धन का विनाश होता है। इसलिए नारियल की स्थापना सदैव इस प्रकार करनी चाहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहे।
अब कलश में सभी देवी देवताओं का आवाहन करें की नौ दिनों के लिए वह इस में विराजमान हो । अब दीपक जलाकर कलश का पूजन करें। धूपबत्ती कलश को दिखाएं। कलश को माला अर्पित करें। कलश को फल मिठाई इत्र वगैरा समर्पित करें।
नवरात्र में मां का भोग
1 पहला पूजा : घी का भोग लगाएं और दान करें, बीमारी दूर होती है।
2. दूसरा पूजा : शक्कर का भोग लगाएं और उसका दान करें, आयु लंबी होती है।
3 तीसरा पूजा : दूध का भोग लगाएं और इसका दान करें, दु:खों से मुक्ति मिलती है।
4.चौथा पूजा : मालपुए का भोग लगाएं और दान करें, कष्टों से मुक्ति मिलती है।
5 पांचवां और छठा पूजा : केले व शहद का भोग लगाएं व दान करें, परिवार में सुख-शांति रहेगी और धन प्राप्ति के योग बनते हैं।
6 सातवां पूजा : गुड़ की चीजों का भोग लगाएं और दान भी करें, गरीबी दूर होती है।
7.आठवां दिन: नारियल का भोग लगाएं और दान करें, सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
8. नौवां दिन: अनाजों का भोग लगाएं और दान करें ,सुख-शांति मिलती है।
कन्या पूजन विधि
कन्या पूजन जिसे लोंगड़ा पूजन भी कहते है अष्टमी और नवमी दोनों ही दिन किया जा सकता है । जिसको करने की विधि कुछ इस प्रकार से है
नौ कुँवारी कन्याओं को सादर पुर्वक आमंत्रित करे
घर में प्रवेश करते ही कन्याओं के पाँव धोएं और उचित आसन पर बिठाए
हाथ में मौली बांधे और माथे पर बिंदी लगाएं।
उनकी थाली में हलवा-पूरी और चने परोसे।
कन्या पूजन के लिए पूजा की थाली जिसमें दो पूरी और हलवा-चने रख ले और बीच में आटे से बने एक दीपक को शुद्ध घी से जलाएं।
कन्या पूजन के बाद सभी कन्याओं को अपनी थाली में से यही प्रसाद खाने को दें।
अब कन्याओं को उचित उपहार तथा कुछ राशि भी भेंट में देऔर चरण छुएं और उनके प्रस्थान के बाद स्वयं प्रसाद खाले।
नवरात्र पूजा विसर्जन विधि
कन्या पूजन के पश्चात एक पुष्प एवं चावल के कुछ दाने हथेली में लें और संकल्प लें|
कलश में स्थापित नारियल और चढ़ावे के तौर पर सभी फल, मिष्ठान्न आदि को स्वयं भी ग्रहण करें और परिजनों को भी दें|
घट के पवित्र जल का पूरे घर में छिडकाव करें और फिर सम्पूर्ण परिवार इसे प्रसाद स्वरुप ग्रहण करें|
घट में रखें सिक्कों को अपने गुल्लक में रख सकते हैं, बरकत होती है|
माता की चौकी से सिंहासन को पुनः अपने घर के मंदिर में उनके स्थान पर ही रख दें|
श्रृंगार सामग्री में से साड़ी और जेवरात आदि को घर की महिला सदस्याएं प्रयोग कर सकती हैं|
श्री गणेश की प्रतिमा को भी पुनः घर के मंदिर में उनके स्थान पर रख दे|
चढ़ावे के तौर पर सभी फल, मिष्ठान्न आदि को भी परिवार में बांटें|
चौकी और घट के ढक्कन पर रखें चावल एकत्रित कर पक्षियों को दें|
माँ दुर्गे की प्रतिमा अथवा तस्वीर, घट में बोयें गए जौ एवं पूजा सामग्री, सब को प्रणाम करें और समुन्द्, नदी या सरोवर में विसर्जित कर दें|
विसर्जन के पश्चात एक नारियल, दक्षिणा और चौकी के कपडें को किसी ब्राह्मण को दान करें|
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