पितृ पक्ष का महत्व

1 September, 2020
पितृ पक्ष का महत्व

पितृ पक्ष क्या है और इन्हे कैसे मनाते है  

हिंदू पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पड़ते हैं| इनकी शुरुआत पूर्णिमा तिथि से होती है और इनका पूर्ण समापन अमावस्या पर होता है| अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक हर साल सितंबर के महीने में पितृ पक्ष की शुरुआत होती है| पितृ पक्ष के दौरान दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है| माना जाता है कि, यदि पितृ नाराज हो जाएं तो व्यक्ति का जीवन भी परेशानियों और तरह-तरह की समस्याओं में पड़ जाता है और खुशहाल जीवन खत्म हो जाता है, साथ ही घर में भी अशांती फैलती है और व्यापार और गृहस्थी में भी हानि होती है| ऐसे में पितरों को तृप्त करना और उनकी आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में श्राद्ध करना बेहद आवश्यक माना जाता है| श्राद्ध के जरिए पितरों की तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है और पिंड दान और तर्पण  कर उनकी आत्मा की शांति की कामना की जाती है| 
हिंदू पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष की तिथियाँ

Ø  1 सितंबर- पूर्णिमा का श्राद्ध

Ø  2 सितंबर- प्रतिपदा का श्राद्ध

Ø  3 सितंबर- द्वितीया का श्राद्ध

Ø  5 सितंबर- तृतीया का श्राद्ध

Ø  6 सितंबर- चतुर्थी का श्राद्ध

Ø  7 सितंबर- पंचमी का श्राद्ध

Ø  8 सितंबर- षष्ठी का श्राद्ध

Ø  9 सितंबर- सप्तमी का श्राद्ध

Ø  10 सितंबर- अष्टमी का श्राद्ध

Ø  11सितंबर- नवमी का श्राद्ध

Ø  12 सितंबर- दशमी का श्राद्ध

Ø  13 सितंबर- एकादशी का श्राद्ध

Ø  14 सितंबर- द्वादशी का श्राद्ध

Ø  15 सितंबर- त्रयोदशी का श्राद्ध

Ø  16 सितंबर- चतुर्दशी का श्राद्ध

Ø  17 सितंबर- अमावस का श्राद्ध(इस दिन आप अपने सभी पितरो के लिए श्राद्ध करते है जिनका आपको याद नही है या आप भूल गए है उनके सभी के लिए आप इस दिन क्षमा याचना करके उनका श्राद्ध करते है|)

पितृ पक्ष का महत्व
हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व माना जाता है| हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद मृत व्यक्ति का श्राद्ध किया जाना बहुत ही जरूरी माना जाता है| माना जाता है कि यदि श्राद्ध न किया जाए तो मरने वाले व्यक्ति की आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है| वहीं ये भी कहा जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितरों का श्राद्ध करने से वो प्रसन्न हो जाते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है| ये भी माना जाता है कि पितृ पक्ष में यमराज पितरो को अपने परिजनों से मिलने के लिए मुक्त कर देते हैं| इस दौरान अगर पितरों का श्राद्ध न किया जाए तो उनकी आत्मा दुखी व नाराज हो जाती है|

पितृ पक्ष में किस दिन किस का करें श्राद्ध
दरअसल, दिवंगत परिजन की मृत्यु की तिथि में ही श्राद्ध किया जाता है| उदाहरण के तौर पर यदि आपके किसी परिजन की मृत्यु प्रतिपदा के दिन हुई है तो प्रतिपदा के दिन ही उनका श्राद्ध किया जाना चाहिए| आमतौर पर इसी तरह से पितृ पक्ष में श्राद्ध की तिथियों का चयन किया जाता है:-
1. जिन परिजनों की अकाल मृत्यु या फिर किसी दुर्घटना या आत्महत्या का मामला है तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है. 
2. दिवंगत पिता का श्राद्ध अष्टमी और मां का श्राद्ध नवमी के दिन किया जाता है| 
3. जिन पितरों के मरने की तिथि न मालूम हो, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन करना चाहिए|
4. यदि कोई महिला सुहागिन मृत्यु को प्राप्त हुई तो उनका श्राद्ध नवमी को करना चाहिए|
5. सन्यासी का श्राद्ध द्वादशी के दिन किया जाता है|

श्राद्ध के नियम क्या होते है और इन्हे कैसे करना चाहिए:-

Ø  पितृ पक्ष के दौरान हर दिन तर्पण किया जाना चाहिए| पानी में दूध, जौ, चावल और गंगाजल डालकर तर्पण किया जाता है|

Ø  इस दौरान पिंड दान भी करना चाहिए| श्राद्ध कर्म में पके हुए चावल, दूध और तिल को मिलाकर पिंड बनाए जाते हैं| पिंड को शरीर के प्रतीक के रूप में देखा जाता है| 

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