निर्जला एकादशी

12 June, 2019
निर्जला एकादशी

निर्जला एकादशी

भारतीय उपासना में व्रतों का बहुत महत्व है। प्रत्येक मास कोई न कोई महान व्रत आता ही रहता है। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी को बिना पानी पिए व्रत रखा जाता है तथा द्वादशी को परायण करके व्रत खोला जाता है। भीषण गर्मी के बीच तप की पराकाष्टा को दर्शाता है यह व्रत। इसमें दान-पुण्य एवं सेवा भाव का भी बहुत बड़ा महत्व शास्त्रों में बताया गया है। 


ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है। अन्य महीनों की एकादशी को फलाहार किया जाता है, परंतु इस एकादशी को फल तो क्या जल भी ग्रहण नहीं किया जाता। यह एकादशी ग्रीष्म ऋतु में बड़े कष्ट और तपस्या से की जाती है। अतः अन्य एकादशियों से इसका महत्व सर्वोपरि है। 

इस एकादशी के करने से आयु और आरोग्य की वृद्धि तथा उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है। महाभारत के अनुसार अधिक माससहित एक वर्ष की छब्बीसों एकादशियां न की जा सकें तो केवल निर्जला एकादशी का ही व्रत कर लेने से पूरा फल प्राप्त हो जाता है। 
वृषस्थे मिथुनस्थेऽर्के शुक्ला ह्येकादशी भवेत्‌
ज्येष्ठे मासि प्रयत्रेन सोपाष्या जलवर्जिता।

निर्जला व्रत करने वाले को अपवित्र अवस्था में आचमन के सिवा बिंदू मात्र भी जल ग्रहण नहीं करना चाहिए। यदि किसी प्रकार जल उपयोग में ले लिया जाए तो व्रत भंग हो जाता है। निर्जला एकादशी को संपूर्ण दिन-रात निर्जल व्रत रहकर द्वादशी को प्रातः स्नान करना चाहिए तथा सामर्थ्य के अनुसार वस्तुएं और जलयुक्त कलश का दान करना चाहिए। इसके अनन्तर व्रत का पारायण कर प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। 
कथा का महात्म्य : 
इस बारे में एक कथा आती है कि पाण्डवों में भीमसेन शारीरिक शक्ति में सबसे बढ़-चढ़कर थे, उनके उदर में वृक नाम की अग्नि थी इसीलिए उन्हें वृकोदर भी कहा जाता है। वे जन्मजात शक्तिशाली तो थे ही, नागलोक में जाकर वहां के दस कुण्डों का रस पी लेने से उनमें दस हजार हाथियों के समान शक्ति हो गई थी। इस रसपान के प्रभाव से उनकी भोजन पचाने की क्षमता और भूख भी बढ़ गई थी। 
सभी पाण्डव तथा द्रौपदी एकादशियों का व्रत करते थे, परंतु भीम के लिए एकादशी व्रत दुष्कर थे। अतः व्यासजी ने उनसे ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत निर्जल रहते हुए करने को कहा तथा बताया कि इसके प्रभाव से तुम्हें वर्ष भर की एकादशियों के बराबर फल प्राप्त होगा। 
व्यास जी के आदेशानुसार भीमसेन ने इस एकादशी का व्रत किया। इसलिए यह एकादशी भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जानी जाती है।

 

निर्जला एकादशी का महत्व

 

भारतीय ऋषि और मनीषी मात्र तपस्वी एवं त्यागी ही नहीं थे, उनके कुछ प्रयोगों, व्रतों, उपवासों, अनुष्ठानों के विधि-विधान एवं निर्देशों से तो प्रतीत होता है कि वे बहुत ऊँचे दर्जे के मनस्विद, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक विचारक भी थे। अब ज्येष्ठ मास (मई-जून) में जब गर्मी अपने चरम पर हो, ऐसे में निर्जला एकादशी का नियम-निर्देश केवल संयोग नहीं हो सकता। 

यदि हम ज्येष्ठ की भीषण गर्मी में एक दिन सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन सूर्योदय तक बिना पानी के उपवास करें तो बिना बताए ही हमें जल की आवश्यकता, अपरिहार्यता, विशेषता पता लग जाएगी- जीवन बिना भोजन, वस्त्र के कई दिन संभाला जा सकता है, परंतु जल और वायु के बगैर नहीं। शायद उन दूरदर्शी महापुरुषों को काल के साथ ही शुद्ध पेयजल के भीषण अभाव और त्रासदी का भी अनुमान होगा ही- इसीलिए केवल प्रवचनों, वक्तव्यों से जल की महत्ता बताने के बजाए उन्होंने उसे व्रत श्रेष्ठ एकादशी जैसे सर्वकालिक सर्वजन हिताय व्रतोपवास से जोड़ दिया। 

निर्जला एकादशी का पौराणिक महत्व और आख्यान भी कम रोचक नहीं है। जब सर्वज्ञ वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो महाबली भीम ने निवेदन किया- पितामह! आपने तो प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है। मैं तो एक दिन क्या एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता- मेरे पेट में 'वृक' नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है। तो क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाऊँगा?

Description: https://hindi.webdunia.com/img/cm/quote_open.gifभारतीय ऋषि और मनीषी मात्र तपस्वी एवं त्यागी ही नहीं थे, उनके कुछ प्रयोगों, व्रतों, उपवासों, अनुष्ठानों के विधि-विधान एवं निर्देशों से तो प्रतीत होता है कि वे बहुत ऊँचे दर्जे के मनस्विद, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक विचारक भी थे।Description: https://hindi.webdunia.com/img/cm/quote_close.gif



पितामह ने भीम की समस्या का निदान करते और उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा- नहीं कुंतीनंदन, धर्म की यही तो विशेषता है कि वह सबको धारण ही नहीं करता, सबके योग्य साधन व्रत-नियमों की बड़ी सहज और लचीली व्यवस्था भी उपलब्ध करवाता है। अतः आप ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एक ही एकादशी का व्रत करो और तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। निःसंदेह तुम इस लोक में सुख, यश और प्राप्तव्य प्राप्त कर मोक्ष लाभ प्राप्त करोगे। 

इतने आश्वासन पर तो वृकोदर भीमसेन भी इस एकादशी का विधिवत व्रत करने को सहमत हो गए। इसलिए वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को लोक में पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन जो स्वयं निर्जल रहकर ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को शुद्ध पानी से भरा घड़ा इस मंत्र के साथ दान करता है। 

देवदेव ऋषीकेश संसारार्णवतारक 
उद्कुम्भ प्रदानेन नय मां परमां गतिम। 

 

 Contact:- Dr. Yagyadutt Sharma

9873850800,8800850853

www.iiag.co.in

Astroguru22@gmail.com

Leave Comment