श्राद्ध का कैसे करे

7 September, 2017
श्राद्ध का कैसे करे
श्राद्ध का कैसे करे तर्पण और पिण्डदान
1…पितरों के निमित्त सारी क्रियायें गले में दाये कंधे मे जनेउ डाल कर और दक्षिण की ओर मुख करके की जाती हे ।
2..श्राद्ध का समय हमेशा जब सूर्य की छाया पैरो पर पड़ने लग जाये अर्थात मध्यान्ह के बाद ही शास्त्रसम्मत है! सुबह सुबह अथवा 12 बजे से पहले किया गया श्राद्ध पितरों तक नही पहॅंचता है। यह सिर्फ रस्मअदायगी मात्र है ।
3..श्राद्ध के नाम पर सुबह सुबह हलवा पूरी बनाकर और थाली बनाकर मन्दिर में पंडित को दे आने से श्राद्ध का फर्ज पूरा नहीं होता है । ऐसे श्राद्धकर्ता को उसके पितृगण कोसते है क्योकि उस थाली को पंडित भी नहीं खाता है बल्कि कूड्रेदान में फैक देता है जहां सूअर, आवारा कुत्ते और पशु आदि उसे खाते है ।
4..श्राद्ध के दिन लहसुन प्याज रहित सात्विक भोजन ही घर की रसोई में बनना चाहिए जिसमे उडद की दाल, बडे, चावल, दूध, घी से बने पक्वान्न, खीर, मौसमी सब्जी जो बेल पर लगती है .जैसे … तोरई, लौकी, सीतफल, भिण्डी कच्चे केले की सब्जी ही भोजन मे मान्य है । आलू, मूली, वैगन अरबी तथा जमीन के नीचे पैदा होने वाली सब्जियां पितरों को नहीं चढती है ।
श्राद्ध करने के लिए मनुस्मृति और ब्रह्मवैवर्त जैसे शास्त्रों में यही बताया गया है कि दिवंगत पितरों के परिवार में या तो ज्येष्ठ पुत्र या कनिष्ठ पुत्र और अगर पुत्र न हो तो धेवता (नाती), भतीजा, भांजा या शिष्य ही तिलांजलि और पिंडदान देने के पात्र होते हैं। कई ऐसे पितर भी होते है जिनके पुत्र संतान नहीं होती है या फिर जो संतान हीन होते हैं। ऐसे पितरों के प्रति आदर पूर्वक अगर उनके भाई भतीजे, भांजे या अन्य चाचा ताउ के परिवार के पुरूष सदस्य पितृपक्ष में श्रद्धापूर्वक व्रत रखकर पिंडदान, अन्नदान और वस्त्रदान करके ब्राह्मणों से विधिपूर्वक श्राद्ध कराते है तो पीड़ित आत्मा को मोक्ष मिलता है।


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