सोमवती अमावस्या

3 February, 2019
सोमवती अमावस्या

सोमवती अमावस्या, जानें कब से कब तक है मुहूर्त, क्या है महत्व

4 फरवरी को मौनी अमावस्या है क्योकि ये अमावस्या सोमवार के दिन पड़ रही है लिहाज़ा ये सोमवती अमावस्या कहलाएगी और इसीलिए इसका महत्व भी कई गुना बढ़ गया है। सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को ही सोमवती अमावस्या कहते हैं। इस बार सोमवती अमावस्या मौनी अमावस्या के दिन है और बेहद ही दुर्लभ संयोग है। सोमवती अमावस्या का हिंदू धर्म में बेहद ही विशेष महत्व होता है। चूंकि ये सोमवार के दिन होती है लिहाज़ा इस दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है और यही कारण है कि सोमवती अमावस्या पर विवाहित स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु की कामना के लिए व्रत भी करती हैं। आइए आपको बताते हैं कि सोमवती अमावस्या कब है, ये कब से कब तक रहेगी, कहानी और महत्व

 

सोमवती अमावस्या कब है?
नाम से ही ज्ञात है कि सोमवती अमावस्या सोमवार को ही होती है। इस बार सोमवती अमावस्या 4 फरवरी यानि मौनी अमावस्या के दिन है। इस दिन पति की लंबी उम्र और पितृों की शांति के लिए व्रत का विधान होता है। सोमवती अमावस्या पर भगवान शिव की पूजा की जाती है।

कब से कब तक रहेगी सोमवती अमावस्या?
4 फरवरी को सोमवती अमावस्या है जो रविवार आधी रात से ही शुरू हो जाएगी। सोमवार को दिन भर अमावस्या का योग रहेगा। वही सोमवार रात 12 बजे के बाद ही अमावस्या संपन्न हो जाएगी। यानि सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में ही डुबकी लगाकर पुण्य कमाया जा सकता है।

सोमवती अमावस्या की कहानी
यूं तो सोमवती अमावस्या व्रत से सम्बंधित कई कहानियां प्रचलित हैं जिन्हे विधि विधान से सुनना चाहिए। इनमें से सोमवती अमावस्या की एक कहानी हम भी आपको सुना रहे हैं जो इस प्रकार है- एक गरीब ब्रह्मण परिवार था, जिसमे पति, पत्नी के अलावा एक पुत्री भी रहती थी। ब्राह्मण परिवार में बेटी धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। वो लड़की बेहद सुन्दर, संस्कारवान और गुणवान भी थी, लेकिन गरीब होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था। एक दिन ब्रह्मण के घर एक साधू पधारे, जो उस कन्या के सेवा भाव से काफी प्रसन्न हुए और कन्या को लम्बी आयु का आशीर्वाद देते हुए बताया कि इस कन्या की हथेली में विवाह योग्य रेखा नहीं है। ब्राह्मण दम्पति काफी परेशान हुआ और साधू से इसका उपाय भी पूछा कि कन्या ऐसा क्या करे की उसके हाथ में विवाह योग बन जाए। तब साधू ने बताया कि कुछ दूरी पर एक गाँव में सोना नाम की धोबी जाति की एक महिला अपने बेटे और बहू के साथ रहती है, जो की बहुत ही आचार- विचार और संस्कार संपन्न तथा पति परायण है। यदि यह कन्या उसकी सेवा करे और वह महिला इसकी शादी में अपने मांग का सिन्दूर लगा दे, उसके बाद इस कन्या का विवाह हो तो इस कन्या का विधवा योग मिट सकता है। साधू ने यह भी बताया कि वह महिला कहीं आती जाती नहीं है। यह बात सुनकर ब्रह्मणि ने अपनी बेटी से धोबिन कि सेवा करने को कहा। लिहाज़ा अपने माता-पिता की बात मान वो कन्या रोज़ाना तडके ही उठ कर सोना धोबिन के घर जाकर, सफाई करती और अन्य सारे करके अपने घर वापस आ जाती। सोना धोबिन अपनी बहू से पूछती है कि तुम तो तड़के ही उठकर सारे काम कर लेती हो और पता भी नहीं चलता। बहू ने कहा कि माँ जी मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर सारे काम ख़ुद ही ख़त्म कर लेती हैं। मैं तो देर से उठती हूँ। इस पर दोनों सास बहू निगरानी करने लगी कि कौन है जो तडके ही घर का सारा काम करके चला जाता है तब धोबिन ने देखा कि एक कन्या घर में आती है और सारे काम करके चली जाती है। रोज़ाना की तरह जब वो कन्या जाने लगी तो धोबिन ने पूछा कि आप कौन है तब कन्या ने साधू की सारी बातें उसे बताई। सोना धोबिन पति परायण थी, लिहाजा वो कन्या की बात मानने को तैयार हो गई। लेकिन उस वक्त उसके पति की स्वास्थ्य ठीक नहीं था लेकिन वो फिर भी कन्या के साथ उसके घर जाने को तैयार हो गई। लेकिन जैसे ही सोना धोबिन ने अपनी मांग का सिन्दूर कन्या की मांग में लगाया तो सोना धोबिन के पति की मौत हो गई। उसे इस बात की जानकारी हुई तो वो वापस लौटने लगी तब उसने सोचा कि रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी। उस दिन सोमवती अमावस्या थी। ब्रह्मण के घर मिले पूए- पकवान की जगह उसने ईंट के टुकडों से भँवरी दी और परिक्रमा की और उसके बाद जल ग्रहण किया। ऐसा करते ही उसके पति के मुर्दा शरीर में जान आ गई। तभी से इस व्रत की महिमा और बढ़ गई।

 

सोमवती अमावस्या पर पीपल की पूजा का महत्व
कहते हैं सोमवती अमावस्या पर खासतौर से पीपल के वृक्ष की पूजा का विधान है। इस दिन विवाहित स्त्रियां पीपल के वृक्ष की दूध, जल, पुष्प, अक्षत, चन्दन से पूजा कर इसकी परिक्रमा करती हैं।

सोमवती अमावस्या पर पवित्र नदियों में स्नान का महत्व
यूं तो हर अमावस्या हिंदू धर्म में खास ही है लेकिन कहते हैं कि सोमवती अमावस्या पर पवित्र नदियों में स्नान का खास महत्व है। इसके महत्व के बारे में महाभारत में भी जिक्र मिलता है कहते हैं कि महाभारत में भीष्म ने युधिष्ठिर सोमवती अमावस्या के महत्व के बारे में समझाते हुए कहा था कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने वाला मनुष्य समृद्ध, स्वस्थ्य और सभी दुखों से मुक्त हो जाता है। कहते हैं इस पितृों की आत्मा की शांति के लिए भी व्रत किया जाता है।

माघ सोमवती अमावस्या का है खास महत्व

 

 
प्रत्येक हिंदी मास के कृष्ण पक्ष की पंद्रहवी तिथि को अमावस्या होती है। अमावस्या का बहुत खास महत्व होता है। इस दिन को पितृ तर्पण से लेकर स्नान-दान आदि कार्यों के लिए काफी शुभ माना जाता है। इसे मौनी अमावस्या या माघी अमावस्या भी कहते हैं। माघ अमावस्या धार्मिक रूप काफी खास होता है। वैसे तो किसी कार्य के लिए अमावस्या की तिथि शुभ नहीं मानी जाती, लेकिन तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान आदि कार्यों के लिए अमावस्या तिथि काफी शुभ होती है। इस दिन पितृ दोष और कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए उपवास और पूजा भी की जाती है।
 

सोमवती अमावस्या से दूर होते हैं अशुभ योग

 

 
किसी भी माह में सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहा जाता है। इस दिन खासकर पूर्वजों को तर्पण किया जाता है। इस दिन उपवास करते हुए पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर शनि मंत्र का जाप करना चाहिए और पीपल के पेड़ के चारों ओर 108 बार परिक्रमा करते हुए भगवान विष्णु तथा पीपल वृक्ष की पूजा करनी चाहिए। खासकर यह व्रत महिलाओं द्वारा संतान के दीर्घायु रहने की लिए की जाती है। 
 

सोमवती अमावस्या के उपाय

 

 
– सोमवती अमावस्या के दिन तुलसी की 108 परिक्रमा करने से दरिद्रता मिटती है।
– इसके बाद क्षमता के अनुसार दान किया जाता है।
– सोमवती अमावस्या के दिन स्नान और दान का विशेष महत्त्व है।
– इस दिन मौन भी रखते हैं, इस कारण इसे मौनी अमावस्या भी कहा जाता है।
– माना जाता है कि सोमवती अमावस्या के दिन मौन रहने के साथ ही स्नान और दान करने से  हजार गायों के दान करने के समान फल मिलता है।
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