मंगली दोष का विचार कैसे करें

27 November, 2021
मंगली दोष का विचार कैसे करें

मांगलिक विचार

मंगली दोष एवं वैवाहिक जीवन- फलित ज्योतिष में विवाह एवं दाम्पत्य जीवन का विचार करते समय मांगलिक दोष पर विशेष ध्यान दिया जाता हैं। यद्यपि मंगली शब्द से वर या कन्या पक्ष के लोग भयभीत हो जाते है। पर हम यहां पर हम इस बात का विचार करेंगे कि वास्तव में मांगलिक दोष क्या होता है और क्या अनिष्ट करता है। आप को यह जानकर आश्चर्य होगा कि संसार में 80 प्रतिशत व्यक्ति मंगली होते है। वधु के विवाह के लिये कुण्डली मिलान के समय मंगल दोष पर खास तौर पर ध्यान दिया जाता है लेकिन मंगली शब्द से भयभीत नहीं होना चाहिए।

मंगली दोष का विचार कैसे करें- मंगली दोष को हमारे ऋषि मुनियों ने जन्म लग्न से (2) चंद्र लग्न से (11) और शुक्र लग्न से और कुछ विद्वानों ने धन भाव में मंगल होने पर भी मांगलिक बताया है। जब जन्म लग्न से चंद्र लग्न से या शुक्र लग्न से प्रथम] चतुर्थ] सप्तम] अष्टम और द्वादश स्थान पर मंगल होने पर बताया है।

अब प्रश्न है कि मंगल दोष का विचार केवल मंगल ग्रह से ही क्यों किया जाता है क्योकि मंगल जहाँ रक्त का सूचक है। वही वह साहस का] वीरता का तथा अग्नि के समान विनाश का भी ध्योतक है। साधारण रूप से वैसे तो सभी ग्रह अपने स्थान से सप्तम स्थान पर दृष्टि रखते है। परन्तु मंगल] शनि और ब्रहस्पति ग्रह को विशेष दृष्टि का अधिकार है। मंगल ग्रह अपने स्थान से चौथे, सातवे एवं आठवें भाव पर पूर्ण दृष्टि रखता है। दाम्पत्य जीवन का विचार मंगल से विशेष रूप से किया जाता है। विद्वानों ने प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव से ही मंगली होने पर विचार किया है और शेष भावों को छोड़ दिया है। इसका भी विशेष कारण है क्योंकि हमारे ज्योतिष शास्त्र में लग्न भाव को तनु भाव अर्थात शरीर माना है। चन्द्रमा से देखने का कारण चन्द्रमा ग्रह मन का कारक है इसी प्रकार शुक्र कामवासना और वीर्य का कारक है इन कारणों से ही इस प्रकार मंगली से दोष का विचार किया जाता है।

मांगलिक दोष का विचार:-विद्वानों द्वारा मांगलिक दोष का विचार वर व कन्या की जन्म कुण्डली के प्रथम, चतुर्थ, अष्टम, सप्तम, द्वादश भाव से ही क्यों किया जाता है। इसकी विवेचना हम आगे के पृष्ठ पर करेंगे-

प्रथम भाव से:- ज्योतिष की दृष्टि से काल पुरुष या जातक का संबंध स्वयं से है। शरीर व स्वास्थ्य

से है और यदि लग्न में मंगल बैठा है तो व्यक्ति के स्वभाव में उग्रता और जिद्दीपन आ जाता है और

हम देखते है कि दाम्पत्य जीवन में या पति पत्नी के बीच जिद्दीपन और क्रोध सुख के लिए अच्छा नहीं

माना है इसलिये प्रथम भाव से मंगली दोष का विचार किया जाता है।

चतुर्थ भाव से:- चौथे भाव से हम भोग सुख की वस्तुओं का विचार करते है। परन्तु जब मंगल चौथे भाव में बैठता है तो ना ना प्रकार के सुखों में कमी करता है और यदि पत्नी को समय पर घर की सुख सुविधा की वस्तुएं नहीं मिलती तो उसके लिये घर गृहस्थी चलाने में बड़ी मुश्किलें आती है और पत्नी बार-बार अपमानित होने से दाम्पत्य सुख में कमी ला देती है इसलिए चतुर्थ भाव से मानसिक दोष का

विचार किया जाता है।

सप्तम भाव:- सप्तम भाव वर कन्या या पति पत्नी के मिलन का व जीवन साथी के स्वास्थ्य का भाव होता है और यदि मंगल सप्तम भाव में बैठता है तो दाम्पत्य सुख में (रति सुख) में हानि करता है। जीवनसाथी के स्वस्थ की हानि करता है। सप्तम भाव से बैठकर मंगल दशम भाव और आठवी दृष्टि से धन भाव को भी देखता है तो इसलिये यदि सप्तम भाव मंगल अशुभ स्थिति में हो तो जातक की आजीविका व निजी कुटुम्ब में कमी लाता है इसलिए सप्तम भाव से मंगली दोष का विचार किया जाता है।

अष्टम भाव से:- अष्टम भाव से हम आयु स्थान व महिलाओं की जन्म कुंडली में सुहाग का भाव होता है। अगर अष्टम भाव में मंगल होता है तो जीवन में विघ्न बाधायें व दुर्घटना होने की सम्भावना बढ़ जाती है। ये आखिरी कारक हो जाता है और इन सब बातों का दाम्पत्य जीवन का सीधा-सीधा असर पड़ता है इसलिए अष्टम भाव से भी मांगलिक दोष का विचार किया जाता है।

द्वादश भाव:- द्वादश भाव क्रय शक्ति यानि व्यय का और शैय्या सुख का भाव होता है। यदि द्वादश भाव में मंगल बैठा हो तो व्यक्ति के क्रय शक्ति में कमी करता है। शय्या सुख में कमी करता है और अगर हम देखे तो द्वादश भाव से मंगल सप्तम भाव को भी देखता है जैसा की हम पहले देख चुके है कि सप्तम और द्वादश भाव दाम्पत्य सुख से जुड़े हुये है इसलिए द्वादश भाव से मंगली दोष का विचार किया जाता है। यहाँ पर एक विचार करने की आवश्यकता है कि मंगली दोष केवल मंगल से ही नहीं मंगली योग कारक ग्रहों से भी बनता है। मंगली योग, मंगल, शनि, सूर्य, राहु और केतु से भी बनता है क्योकि ये पांचो पाप ग्रह है। ये ग्रह जब लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में बैठते है या युति दृष्टि करते है तो जातक के स्वास्थ्य सुख व रति सुख में कमी करते है। इन सब के अशुभ फलों के प्रभाव से जातक के दाम्पत्य सुख पर सीधा असर पड़ता है।

मंगली दोष केवल लग्न कुंडली से ही बनता है तो इसका दोष व दुष्प्रभाव कमजोर होता है। यदि लग्न के साथ चंद्र कुंडली से भी यह दोष हो तो इसका प्रभाव अधिक बढ़ जाता है क्योकि ”चन्द्रमा मनसो जात चक्षो” अर्थात् चन्द्रमा मन का कारक ग्रह है लेकिन यदि यह रोग लग्न कुंडली, चंद्र कुंडली, शुक्र कुंडली अर्थात् तीनों से बन जाये तो इनका दुष्प्रभाव ज्यादा बढ़ जाता है और ऐसे जातक के दाम्पत्य सुख में कमी की ज्यादा सम्भावनायें बढ़ जाती है।

मंगली दोष का परिहार:- जन्म कुंडली में मंगली दोष होने पर उसका परिहार दो प्रकार से होता है। अतः वर या कन्या की कुंडली में मंगली योग होने पर उसी कुण्डली मे मंगली दोष निष प्रभाव हो जाये तो उसे आत्म कुंडली गत परिहार कहते है। लेकिन वर या कन्या इन दोनों में से किसी एक की कुंडली में मंगली दोष का दुष्प्रभाव दुसरे की कुंडली के मंगली दोष दूर हो जाता है तो उसे कुण्डली गत परिहार कहते है।

आत्म कुण्डली गत परिहार:-

1.       1. यदि जातक की कुण्डली में मंगल शुक्र की राशि में बैठा हो तथा सप्तमेश बलवान होकर केन्द्र या त्रिकोण में हो तो मंगल दोष प्रभाव हीन हो जाता है।
2.   जिस कुंडली में मंगली दोष योग हो यदि उसमे शुभ ग्रह केन्द्र-त्रिकोण में तथा पाप ग्रह तिषढाय में हो तथा सप्तमेश सप्तम स्थान में हो तो मंगली दोष प्रभाव हीन हो जाता है।
3.   मंगली योग वाली कुंडली में बलवान गुरु या शुक्र के लग्न या सप्तम में होने पर अथवा मंगल के निर्बल होने पर मंगली दोष प्रभाव हीन हो जाता है।
4.   यदि मंगली योग, कारक ग्रह स्वराशीमूल त्रिकोण राशि या अपनी उच्च राशि में हो तो मंगली दोष स्वयं समाप्त हो जाता है।
5.   मेष का मंगल लग्न में वृश्चिक राशि का मंगल चौथे भाव में वृष राशि का मंगल सप्तम, कुंभ राशि का मंगल अष्टम में और धनु राशि का मंगल व्यय स्थान में स्थिति हो तो मंगली दोष का आत्म कुंडली गत दोष दूर हो जाता है।
6.   गुरु मंगल सयोगे भौम दोषों न विद्यते। चंद्र मंगल सयोगे, भौम दोषों न विद्यते।।

भौमेन सद्र्शो भौमा पापों व तादृशो भवेत। विवाहः शुभदः प्रोक्तिशिचरायुः पुत्र पौवदः ।।

पर कुंडली गत परिहार:-

1.   वर या कन्या में से किसी एक की कुंडली में मंगली योग हो तथा दूसरी कुंडली में यह योग शनि से बनता हो तो मंगली दोष दूर हो जाता है।

2.   वर कन्या में से किसी एक कुंडली में मंगली दोष योग हो तथा दुसरे की कुंडली में मंगली योग कारक भाव में पाप ग्रह हो तो मंगली दोष दूर हो जाता है।

3.   वर या कन्या में से किसी एक की कुंडली में पाप ग्रह से मंगली दोष बनता हो तथा दुसरे की कुंडली में गुरु सप्तम भाव को देखना हो तो शुभ दृष्टि से भी मंगली दोष दूर हो जाता है।

4.   वर कन्या दोनों की कुंडली में मंगली दोष हो परन्तु सप्तमेश व शुक्र बलवान व शुभ दृष्टि में हो तो यह दोष प्रभाव हीन हो जाता है।

5.   सबले गुरु भ्रगो व लग्ने द्य

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